माइंडफुलनेस बच्चों के लिए - मेरी बेटी की कहानी



माइंडफुलनेस बच्चों के लिए - मेरी बेटी की कहानी


पिछले साल अगस्त में एक दिन अचानक से मेरी 10 वर्ष की बेटी मायरा ने स्कूल जाने मैं आनाकानी करने लगी। अभी पेट मे दर्द हो रहा है, सिर दुख रहा है - कभी कुछ तो कभी कुछ बहाना। शुरू में मैने और मेरी पत्नी ने सोचा की शायद बच्ची को बीमार है लेकिन ऐसा होते होते  एक सप्ताह निकल गया और मायरा स्कूल जाने को तैयार नहीं हुई। जब मेरी पत्नी मायरा को सुबह स्कूल जाने के लिए उठाती तो वह रोना, चिल्लाना, शुरू कर देती। कोई ना कोई बहाना बनाकर वह स्कूल नहीं जाती थी।

माइंडफुलनेस बच्चों के लिए - मेरी बेटी की कहानी


जब हम तक थक हार के मायरा को डॉक्टर के पास ले कर गये तो उसने कहा कि बच्ची को anxiety हो रही है। मैं सोच में पड़ गया - 10 साल की बच्ची को anxiety? हमारे  लिए यह शब्द बिल्कुल नया था।


कुछ दिन बाद  एक पुरानी मित्र से बात हुई, वो साइकोलॉजी की प्रोफेसर है। उसने बोला "तू  माइंडफुलनेस (mindfulness) ट्राई करके देख।" नाम सुनकर मुझे लगा कि ये भी कोई fashionable चीज होगी जो काम नहीं आएगी, पर फिर सोचा  थोड़ा पॉजिटिव होकर ट्राई करके देख सकते हैं क्योंकि मुझे कुछ और समझ में नहीं आ रहा था।


आज कुछ महीने बाद मेरी बेटी मायरा खुद सुबह उठकर तैयार हो जाती है और कभी भी स्कूल में अनुपस्थित नही होती है दोस्तों के साथ हंसती-खेलती है। स्कूल से आकर मुझे उसने क्या-क्या किया उत्साहित होकर मुझे बताती है। अब मैं चाहता हूं कि और भी पेरेंट्स को पता चले कि बच्चों के लिए माइंडफुलनेस (mindfulness for kids) क्या चीज है और यह बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में कैसे काम करती है।।


 माइंडफुलनेस - मैंने भी पहली बार सुना था


 मैंने अपने अपने प्रोफेसर दोस्त की सलाह यह जानने का प्रयास किया माइंडफुलनेस  क्या है। मैंने इंटरनेट पर सर्च किया YouTube पर वीडियो देखे,   लेकिन माइंडफूलनेस समझने की बाजाये मेंं मैं बहुत कंफ्यूज हो गया। लेकिन जब मैंने खुदसे समझने का प्रयास किया तो मुझे समझ मेंं आया माइंडफूलनेस का क्याअर्थ है?

माइंडफुलनेस सीधा सा मतलब है - जो भी वर्तमान में हो रहा है उसमें पूरी तरह अपने ध्यान को केंद्रित करना है। मतलब आप जिस समय जो भी काम कर रहे हैं। उसे समय केवल उसी चीज पर ध्यान देना और किसी चीज पर नहीं। लेकिन आजकल यह सब करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि बच्चों के साथ-साथ बड़े लोग एक साथ-साथ कई काम करते हैं इसलिए वह किसी एक काम में भी सफल नहीं हो पाते हैं।

Mindfulness 



जब मैं अपने घर को ऑब्जर्व किया तो दिखा कि मेरी बेटी अपने स्कूल का होमवर्क कर रह होता है और साथ में यूट्यूब अथवा टीवी चल रहा होता है,  मेरी श्रीमती जी का खाना बनाते वक्त  सोशल मीडिया ऐप ऑन होते है या वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से  बात कर रही होती हैं । मैं खुद खाना खाते वक्त फोन देख रहा होता हूं। दिमाग हमेशा कहीं और है - या तो पिछली बातों में या फिर आगे की चिंता में। हम सब काम कुछ और कर रहे होते है और हमारा मन कहीं और भाग रहा होता है। हम सब ऐसे ही हो गए थे।


बच्चों को माइंडफुलनेस सिखाने का मतलब है उन्हें बताना कि कैसे अपने सांस पर ध्यान दें, अपनी feelings को पहचानें। जब मेरा 11 साल का बेटा गुस्से में होता है तो अब वो चीजें फेंकने की बजाय बोलता है "मुझे थोड़ा टाइम चाहिए।" फिर अपने कमरे में जाता है, कुछ देर बाद शांत होकर आता है। पहले तो पूरा घर सिर पर उठा लेता था!


आजकल के बच्चे - कितना प्रेशर है इन पर


जब मैं अपने बचपन को देखता हूं तब जब मैं 11 साल का था तो हम सुबह स्कूल चले जाते थे फिर घंटे डेढ़ घंटे स्कूल का होमवर्क करते थे। हर शाम को गली मोहल्ले के बच्चों के साथ अलग-अलग खेल खेलते थे। जब मैं अपने बच्चों की दिनचर्या को देखता हूं तो लगता है कि इनकी जिंदगी कितनी complicated हैं।

मेरे बेटे का शेड्यूल देखें - सुबह 7 बजे उठना, 8 बजे स्कूल, 2 बजे वापस, 4 बजे ट्यूशन, शाम को स्विमिंग क्लास (मंगलवार-गुरुवार), कोडिंग क्लास (शनिवार)। बीच में होमवर्क, प्रोजेक्ट, तैयारी। बच्चा कब सांस ले भाई?


स्ट्रेस - बचपन में ही आ गया


पिछले महीने मेरे पड़ोसी की  12 साल की बेटी  को पैनिक अटैक आया। स्कूल में ही। जब वह अर्धवार्षिक परीक्षा देने स्कूल पहुची तो एग्जाम पेपर मिलने से पहले इतना stress हो गया कि सांस लेने में तकलीफ होने लगी। यदि 12 साल के बच्चों को इतना  स्ट्रेस हो गया तो इन बच्चों पर जैसे-जैसे पढ़ाई का दबाव बढ़ेगा तो यह तनाव में जाने लगेगे।

Mindfulness for children 



मेरी बेटी जब anxiety में थी तो उसे पता ही नहीं चलता था कि उसे क्या हो रहा है। बस रोती  चिल्लाती थी, पेट दर्द बोलती थी। बाद में समझ आया कि वह मन से बीमार है शरीर में कोई प्रॉब्लम नहीं था।


बच्चों में तनाव (stress in children) अब normal हो गया है। हर बच्चे को कुछ न कुछ है - exam stress, competition का डर, सोशल मीडिया पर कम likes मिले तो उदास हो जाना। मेरी भतीजी तो Instagram पर अपनी फोटो पर कम likes आए तो पूरा दिन मुंह फुलाए बैठी रही और हर 10-15 मिनट के बाद देखते है कि उसके लाइक बढ़े अथवा नहीं


इन सारी समस्याओं से बचने का केवल एक ही तरीका है मइंडफुलनेस । जो की बिल्कुल natural तरीका है,  ना इसके कोई साइड इफेक्ट्स है और ना इसमें किसी दवाई की जरूरत होती है


फोकस करना - भूल ही जाओ


आज करके समय में फोकस  करना लगभग बच्चों के लिए असंभव है क्योंकि अब उनके distract होने के कई सारे साधन आ गए हैं। टीवी, गेम्स, सोशल मीडिया आदि कुछ समय पहले मेरा बेटा 5 मिनट में 20 बार distract हो जाता है। अभी किताब खोली, फिर फोन देखा, फिर window से बाहर देखने लगा, फिर पानी पीने उठ गया। एक चैप्टर पढ़ने में उसे घंटो लग जाता है क्योंकि उसका ध्यान चैप्टर के अलावा बाकी सब जगह था।


आजकल के बच्चों की concentration (focus problems) बहुत कम हो गई है। और इसमें हमारे बच्चों की सारी गलती भी नहीं है । हम ही अपनी शांति के लिए उन्हें छोटे से ही मोबाइल थमा देते हैं और फिर हमारे बच्चों को मोबाइल की गंदी आदत पड़ जाती है । फिर पेरेंट्स कि हमारा बच्चा बिना मोबाइल के रहता ही नहीं है। अब आप ही बताइए कि इसमें गलती किसकी है?


जब से मैंने अपने बच्चों को माइंडफुलनेस तकनीक का पालन करवाया है तो वह ज्यादा ध्यान से अपना काम करने लगे है। मेरे बेटे और बेटी की टीचर ने कहा कि क्लास में उसका ध्यान अब पहले से  बहुत बेहतर है। पहले तो window से बाहर देखता रहता था।


बच्चों का गुस्सा


 आज करके बच्चे से लेकर बड़े तक गुस्सैल और चिड़चिड़े हो गए हैं । जब मेरे बच्चों को स्कूल में डांट पडती थी या उनकी किसी उनके मित्र से लड़ाई हो जाती थी तो  घर में आकर चिड़चिड़ाने लगते थे। घर का सामान इधर-उधर फेंकने लगते थे


बच्चों को अपनी emotions को समझना नहीं आता। वो नहीं जानते कि गुस्सा क्या है, उदासी क्या है, ये कहां से आती हैं। बस feel होता है और react कर देते हैं।


इमोशनल इंटेलिजेंस  (emotional intelligence) बहुत जरूरी है। जब मेरी बेटी को anxiety थी तो उसे खुद नहीं पता था कि उसे anxiety है। वो बस बोलती थी "मुझे अजीब लग रहा है।" माइंडफुलनेस से उसने अपनी feelings को पहचानना सीखा।


माइंडफुलनेस के फायदे - मैंने खुद देखे हैं


इंटरनेट और यूट्यूब पर थ्योरी तो बहुत सुनी थी मैंने, पर असली बात तब समझ आई जब अपने बच्चों में changes देखे। वो बदलाव बताता हूं जो personally मैंने notice किए।


पहले तो लगा कि ये सब बकवास है, 10-15  मिनट बैठकर सांस लेने से क्या होगा? पर जब consistently किया तो results दिखने लगे। हफ्ते-दो हफ्ते में नहीं, मगर करीब 2 महीने बाद साफ फर्क दिखा।


मेरे बच्चे अब ज्यादा समझदार हो गए हैं। अब उन्हें गुस्सा कम आता है।  स्कूल अर्धवार्षिक परीक्षा में उनके मार्क्स 45% आए थे लेकिन अब वार्षिक परीक्षा में 85% आए ।। सबसे बड़ी बात - वो खुश रहते हैं। चेहरे पर tension की जगह मुस्कान रहती है।


पढ़ाई में इंप्रूवमेंट


मेरी बेटे मोहन के progress report में टीचर ने लिखा था "needs to focus more in class." ये मार्च की बात है। अगस्त में जब report आई तो लिखा था "showing good improvement, attentive in class." 


मैंने  अपने बच्चों को कोई भी ट्यूशन नहीं लगवाया। बस अपने घर माइंडफुलनेस practice (mindfulness practice) शुरू करवाई थी। केवल 10 से 15 मिनट मेरे बच्चे माइंडफूलनेस का अभ्यास करते थे। Science और maths में marks 15-20 बढ़ 

बच्चों का ध्यान पढ़ाई में लगने लगा है। पहले किताब खोलता था तो मन कहीं और होता था। अब जब पढ़ने बैठता है तो फोन दूसरे room में रख देता है, door बंद कर लेता है।  अब बिना बीच में उठेहु बच्चे एक या दो घंटे आराम से पढ़ लेते हैं।


चिंता कम होने के कारण नींद अच्छी आती है।


मेरी बेटी जब anxiety में थी तो रात को 12-1बजे तक सो नहीं पाती थी। वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी, कभी पानी पीने उठती, कभी बाथरूम जाती। सुबह थकी-थकी उठती थी।


अब हम रात को 9:45 बजे साथ में body scan meditation करते हैं। मैं धीरे-धीरे बोलता हूं "अपने पैरों पर ध्यान दो... अब घुटनों पर... अब पेट पर..." और meditation खत्म होने से पहले ही वो सो जाती है। 


सुबह fresh उठती है। उसका mood भी अच्छा रहता है। मेरी वाइफ बोलती है कि बच्ची पहले जैसी हो गई है - हंसती-खेलती रहती है।


गुस्सा control में


मोहन का गुस्सा बहुत खराब था। छोटी बात पर चीजें फेंक देता था। एक बार तो इतना गुस्सा आया कि अपना favorite toy तोड़ दिया। फिर खुद रोने लगा।


अब जब गुस्सा आता है (और आता है, आखिर 11 साल का बच्चा है), तो वो पहले रुकता है। मैंने उसे सिखाया है "जब गुस्सा आए तो 5 गहरी सांसें लो।" अब वो यही करता है। 


दो-चार दिन पहले उसका दोस्त उसकी किताब  लेकर भाग गया था. रोहन को गुस्सा आया मगर उसने तुरंत react नहीं किया। 5 सांसें लीं, फिर जाकर शांति से बोला "please book return कर दे, मुझे भी पढ़ना है।" मैं पास में ही खड़ा था, मुझे माइंडफूलनेस के फायदे यकीन नहीं हो रहा था!


बच्चों को कैसे समझाएं माइंडफुलनेस? 


ये तो बड़ा question था मेरे लिए. बच्चों को कैसे बोलें कि भाई ये माइंडफुलनेस करो? सीधे बोलोगे तो बोरिंग लगेगा, नहीं करेंगे।


मैंने एक trick use की। मैंने बच्चों से कहा "मैं तुम्हें एक superpower सिखाता हूं।" दोनों की आंखें चमक गईं। रोहन तो तुरंत बोला "क्या सुपरपावर पापा?"


मैंने बोला "ये power तुम्हें शांत रहने में मदद करेगी, तुम्हारा दिमाग तेज करेगी, और तुम्हें खुश रखेगी। और सबसे अच्छी बात - हर कोई इसे सीख सकता है।"


फिर मैंने एक छोटा सा experiment किया। मैंने उन्हें एक chocolate दी और बोला "इसे जल्दी मत खाना। पहले देखो कैसी दिखती है - color क्या है, shape कैसी है। फिर smell करो - कैसी खुशबू आ रही है। अब मुंह में रखो और बहुत धीरे-धीरे चबाओ। taste को feel करो।"


मायरा ने बोला "पापा! इतनी yummy chocolate मैंने कभी नहीं खाई!" मैंने बोला "chocolate वही है जो तुम रोज खाती हो। फर्क ये है कि आज तुमने पूरा ध्यान देकर खाया। इसे कहते हैं mindfulness।"


बस इतना समझाने से काम हो गया। बच्चों को complicated बातें मत बताओ। simple examples दो जो वो relate कर सकें।


बच्चों की मानसिक विकास के लिए क्या करें?

सवाल हर parent के मन में होता है। मैं तो खुद confused था। बहुत सी चीजें try कीं, कुछ काम आईं कुछ नहीं। अब जो काम आया वो बता रहा हूं।


सबसे पहली बात - घर का environment शांत होना चाहिए। अगर घर में हर वक्त झगड़ा हो रहा है, चिल्ला-चिल्ला कर बात हो रही है, तो बच्चा कैसे शांत रहेगा? पहले मैं और मेरी वाइफ बहुत लड़ते थे . फिर हमने decide किया कि बच्चों के सामने नहीं लड़ेंगे, और अगर disagreement है तो normal tone में discuss करेंगे।


दूसरी चीज - बच्चों के साथ time spend करना जरूरी है। Quality time, जिसमें phone नहीं चल रहा, TV नहीं चल रहा। हम रोज रात को खाने के बाद 15-20 मिनट साथ बैठते हैं और बात करते हैं। हर कोई बताता है कि आज का दिन कैसा रहा, क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा हुआ।


तीसरी बात - screen time control करना। ये सबसे मुश्किल है! मेरा बेटा तो mobile से चिपका रहता था। मैंने rule बनाया - सुबह 8 से शाम 6 तक no mobile (ऑनलाइन क्लास को छोड़कर)। पहले हफ्ते बहुत drama हुआ, रोना-धोना, gussa, सब कुछ। पर मैं strict रहा। अब आदत पड़ गई है।


चौथी चीज जो सबसे important है - mindfulness practice। इसके बारे में आगे detail में बताऊंगा कि कैसे करें।


पांचवीं बात - बच्चों को nature के साथ time बिताने दो। हर weekend हम कहीं न कहीं बाहर जाते हैं. Park में, garden में, या फिर कहीं बाहर. बच्चे पेड़ों के पास जाते हैं, पत्तियां छूते हैं, मिट्टी में खेलते हैं। ये natural therapy है।


छठी बात - बच्चों को responsibilities दो। आरा अपना room खुद साफ करती है, अपना tiffin box खुद धोती है। रोहन को plants में पानी डालने की जिम्मेदारी दी है। जब बच्चों को responsibilities मिलती हैं तो वो ज्यादा responsible और mature बनते हैं।


माइंडफुलनेस बच्चों के लिए अच्छा क्यों है?


जब मैंने पहली बार माइंडफुलनेस के बारे में सुना तो मुझे लगा कि ये कोई time waste है। 10 मिनट बैठकर सांस लेने से क्या होगा? पर जब खुद किया और बच्चों के साथ किया तो पता चला कि ये कितनी powerful चीज है।


माइंडफुलनेस दवाई नहीं है - ये एक skill है जो जिंदगी भर काम आएगी। आज रोहन 11 साल का है और stress handle करना सीख रहा है। जब वो 25 साल का होगा और office में काम करेगा, तब भी ये skill उसके काम आएगी। ये long-term investment है।


दूसरी बात - ये brain की exercise है। जिम में हम body की exercise करते हैं ना? माइंडफुलनेस brain की exercise है। मैंने research papers पढ़े तो पता चला कि regularly माइंडफुलनेस करने से brain में actual physical changes आते हैं। Focus वाला area strong होता है, stress वाला area calm होता है।


तीसरी बात - ये बच्चों को खुश रखती है। जब बच्चा present moment में रहता है तो वो past की बुरी बातों में नहीं अटकता, future की चिंता नहीं करता। बस अभी जो है उसमें खुश रहता है। मेरी बेटी अब छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढती है - बारिश की बूंदें, फूल की खुशबू, birds की आवाज।


चौथी बात - ये बच्चों को mentally strong बनाती है। Life में problems तो आएंगी ही - exams, competitions, failures, rejections. माइंडफुलनेस उन्हें सिखाती है कि इन problems को कैसे face करें। Panic न हों, calm रहें, सोच-समझकर react करें।


पांचवी बात - ये बच्चों के relationships improve करती है। जब बच्चा अपनी feelings समझने लगता है तो वो दूसरों की feelings भी समझने लगता है। Empathy develop होती है. मेरी बेटी अब अपने दोस्तों के साथ ज्यादा अच्छे से घुल-मिल रही है।


Practical Tips - कैसे सिखाएं माइंडफुलनेस


अब आता है सबसे important part. Theory तो बहुत है, पर करना कैसे है? मैं वो बताता हूं जो मैंने खुद try किया और जो work किया।


पहला तरीका - belly breathing. सबसे simple है. मैं बच्चों से बोलता हूं "अपने पेट पर हाथ रखो। अब imagine करो कि तुम्हारे पेट में एक balloon है। जब सांस लोगे तो balloon फूलेगा, जब छोड़ोगे तो पिचकेगा।" बस 5 मिनट ये करो रोज। शुरुआत के लिए बहुत है।


दूसरा तरीका - 5 senses game. जब भी बच्चे stressed हों - exam से पहले, डॉक्टर के पास जाने से पहले - तो ये game खेलो। 5 चीजें बताओ जो देख सकते हो, 4 चीजें जो touch कर सकते हो, 3 आवाजें जो सुन सकते हो, 2 smells, 1 taste. ये game instantly present moment में ले आता है।


तीसरा तरीका - mindful eating. एक दिन try करके देखो. किशमिश या chocolate का एक piece लो. पहले देखो, फिर smell करो, फिर बहुत slowly खाओ. हर bite का taste feel करो. बच्चों को बहुत मजा आएगा और ये perfect mindfulness है।


चौथा तरीका - slow motion walk. Weekend पर park में जाओ और बहुत धीरे-धीरे चलो. हर step को feel करो - पैर कैसे ground को touch कर रहा है, weight कैसे shift हो रहा है. बच्चों को game बनाकर खिलाओ "आज हम slow motion movie के characters हैं!"


पांचवां तरीका - body scan meditation. Raat को सोने से पहले. बच्चे को bed पर litao और धीरे-धीरे बोलो "अपने पैर की उंगलियों पर ध्यान दो... अब पैरों पर... अब घुटनों पर..." पूरे शरीर पर एक-एक करके ध्यान दो. बच्चे बहुत जल्दी सो जाते हैं इससे।


छठा तरीका - gratitude practice. हर रात dinner के बाद हर कोई तीन चीजें बताए जिनके लिए thankful है. छोटी-छोटी चीजें - "आज का khana tasty था", "दोस्त के साथ खेला", "पापा ने मुझे hug किया". ये positive thinking develop करता है।


उम्र के हिसाब से अलग approach


हर उम्र के बच्चों के लिए technique थोड़ी different होनी चाहिए. मेरी 3 साल की भतीजी के साथ जो करता हूं वो 11 साल के बेटे के साथ नहीं चलेगा।


छोटे बच्चों के लिए (3-6 साल) - सब कुछ game बनाओ. "चलो आज हम rabbit की तरह breathe करेंगे - छोटी-छोटी सांसें। अब lion की तरह - बड़ी सांस और roar!" या फिर "freeze dance" खेलो - music चलता है तो dance करो, music बंद हुआ तो statue बन जाओ। ये भी mindfulness है।


School जाने वाले बच्चों के लिए (7-12 साल) - थोड़ा structured approach. YouTube पर guided meditation for kids search करो. 10 मिनट के छोटे meditations हैं. या फिर apps हैं जैसे Headspace Kids. इस उम्र के बच्चों को समझा सकते हो कि mindfulness क्यों जरूरी है।


Teenagers के लिए (13-18 साल) - बहुत carefully handle करना पड़ता है. Direct बोलोगे "meditation करो" तो बोरिंग लगेगा. उन्हें journaling suggest करो - हर रात 5 मिनट diary में लिखो. या फिर music के साथ meditation. कुछ teenagers को group meditation पसंद आता है. और सबसे important - force मत करो।


जो गलतियां मैंने कीं


मैं सच बता रहा हूं - शुरुआत smooth नहीं थी। बहुत सारी गलतियां कीं मैंने। उन गलतियों से सीखा और अब share कर रहा हूं ताकि आप वो गलतियां न करो।


पहली गलती - बहुत ambitious start किया. First day ही 30 मिनट का meditation करवाने की कोशिश की. बच्चे 5 मिनट में भाग गए. फिर समझ आया कि छोटा start करना चाहिए - 2-3 मिनट से. धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।


दूसरी गलती - force किया. जब बच्चे नहीं करना चाहते थे तो मैं गुस्सा हो जाता था "तुम्हें करना ही पड़ेगा!" ये सबसे बड़ी गलती थी. माइंडफुलनेस force करने से काम नहीं करती। इसे interesting बनाओ, fun बनाओ।


तीसरी गलती - perfection expect किया. मैं चाहता था कि बच्चे एकदम still बैठें, कोई movement न हो. पर वो बच्चे हैं! थोड़ा हिलेंगे-डुलेंगे. Progress देखो perfection नहीं।


चौथी गलती - खुद skip कर दिया कई बार. कुछ दिन मैं थका हुआ होता था तो सोचता था आज छोड़ देते हैं. पर फिर बच्चों को भी आदत नहीं पड़ती थी. Consistency सबसे जरूरी है. हर रोज करो, भले ही 5 मिनट ही क्यों न हो.


पांचवी गलती - बच्चों को compare करना. "देखो तुम्हारी बहन कितनी अच्छी तरह कर रही है." ये बहुत बुरा था. हर बच्चा अलग है, अपनी pace से सीखता है. Compare करने से बच्चे demotivate हो जाते हैं.


असली बदलाव - धीरे-धीरे आया


जब मैंने शुरू किया था माइंडफुलनेस तो मुझे लगता था कि एक-दो हफ्ते में सब magic हो जाएगा. पर ऐसा नहीं हुआ. पहले महीने तो कुछ खास फर्क नहीं दिखा सच बताऊं.


पहले हफ्ते बच्चों ने बहुत resist किया. "पापा ये boring है", "मुझे नहीं करना", "क्या फायदा है इसका". मैं भी frustrated हो रहा था. मेरी वाइफ ने भी दो-तीन बार बोला "छोड़ दो ये सब, काम नहीं आ रहा."


पर मैंने हार नहीं मानी. मैंने technique change की. Games add किए. Fun activities add कीं. धीरे-धीरे बच्चों को interest आने लगा.


दूसरे महीने में थोड़े changes दिखने लगे. रोहन का gussa थोड़ा कम हुआ. आरा की रात की नींद थोड़ी बेहतर हुई. छोटे-छोटे changes थे पर दिख रहे थे.


तीसरे महीने में proper results दिखे. आरा ने खुद बोला "पापा मुझे स्कूल जाना अच्छा लगने लगा है." रोहन के teacher ने phone किया और तारीफ की. मुझे लगा हां, हम सही रास्ते पर हैं.


अब 6 महीने हो गए हैं और फर्क दिन-रात का है. दोनों बच्चे पहले से बहुत बेहतर हैं. खुश हैं, calm हैं, focused हैं. अब तो वो खुद remind करते हैं "पापा आज meditation नहीं किया अभी तक!"


Parents की role - सबसे important


एक बात मैं clear कर दूं - अगर तुम खुद माइंडफुल नहीं हो तो बच्चों को कैसे सिखाओगे? बच्चे वो करते हैं जो देखते हैं, न कि जो सुनते हैं.


मैं रोज सुबह 15 मिनट meditation करता हूं. कभी-कभी रोहन आकर बैठ जाता है मेरे साथ. मैंने उसे बोला नहीं कभी, वो खुद आया. वो देखता है कि पापा कर रहा है तो शायद कुछ अच्छी चीज होगी.


खाना खाते समय अब मैं phone नहीं देखता. पहले तो हर bite के बीच में phone check कर रहा होता था. अब पूरा focus खाने पर और family पर. बच्चों ने भी यही सीखा - dinner table पर कोई phone नहीं.


जब बच्चे मुझसे कुछ बोल रहे हों तो मैं सच में सुनता हूं. पहले तो "हां हां" बोलते हुए अपने काम में लगा रहता था. अब मैं रुकता हूं, उनकी तरफ देखता हूं, ध्यान से सुनता हूं. ये भी mindfulness है और बच्चों को feel होता है कि पापा सच में interested है.


घर का environment भी बहुत matter करता है. हमने TV का volume कम रखना शुरू किया. Unnecessary noise कम की. घर में एक peaceful corner बनाया जहां कोई भी जाकर शांति से बैठ सकता है - कुछ cushions, कुछ plants, soft lighting.


 School में भी हो सकता है


मोहन के school में मैंने principal से बात की. मैंने suggest किया कि क्या हम class में mindfulness शुरू कर सकते हैं. पहले तो उन्हें doubt था पर फिर उन्होंने agree किया pilot project के लिए.


अब रोहन की class में हर दिन सुबह 5 मिनट का mindfulness session होता है. बच्चे चुपचाप बैठते हैं, eyes बंद करते हैं, teacher उन्हें breathing exercise करवाती है. बस 5 मिनट. से 10 मिनट


Teacher बता रही थी कि इससे बहुत फर्क पड़ा है. बच्चे ज्यादा attentive हैं class में. Fighting-jhagda कम हो गया है. Concentration बेहतर है.


कुछ schools में तो अब proper mindfulness programs चल रहे हैं. Trained teachers हैं जो बच्चों को सिखाते हैं. Parents को भी involve करते हैं. ये बहुत अच्छी बात है.


अगर तुम्हारे बच्चे के school में नहीं है तो तुम suggest कर सकते हो. Parent-teacher meeting में बात करो. अपना experience share करो. धीरे-धीरे change आएगा.


आखिर में मेरी बात


यार honestly बोलूं तो माइंडफुलनेस ने सिर्फ मेरे बच्चों को नहीं, पूरे family को बदल दिया है. हम सब ज्यादा present हैं एक-दूसरे के साथ. कम लगते हैं. ज्यादा खुश रहते हैं.


मेरी बेटी जो 6 महीने पहले school जाने से रो रही थी, आज खुशी-खुशी जाती है. मेरा बेटा जो हर छोटी बात पर चीजें फेंक देता था, आज शांति से अपनी feelings express करता है. और मैं जो हर वक्त stressed रहता था, आज थोड़ा calm हूं.


माइंडफुलनेस बच्चों के लिए कोई luxury नहीं है - ये necessity है आज के time में. जितना stress बच्चों पर है, उससे deal करने के लिए उन्हें tools चाहिए. माइंडफुलनेस वो tool है.


ये कोई quick fix नहीं है. इसमें time लगता है, patience चाहिए, consistency चाहिए. पर जो results मिलते हैं वो life-changing हैं.


अगर तुम्हारा बच्चा stressed है, anxious है, angry है, या बस खुश नहीं है - तो एक बार माइंडफुलनेस try करके देखो. बस 2 मिनट से शुरू करो. हर रोज. धीरे-धीरे बढ़ाओ.


और हां, सबसे important बात - खुद भी करो. बच्चों के साथ बैठो. साथ में सांस लो. साथ में महसूस करो वो शांति जो mindfulness लाती है.


मेरे लिए तो ये journey बहुत beautiful रही है. मैंने अपने बच्चों को और करीब से जाना है. उनकी feelings को समझा है. और सबसे बड़ी बात - मैंने खुद को भी जाना है.


अगर मैं कर सकता हूं, तुम भी कर सकते हो. बस शुरू करने की देर है.


सुभकामनाएं दोस्तों! तुम्हारे बच्चे खुश रहें, healthy रहें, और mindful रहें. 🙏

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